आदर्शों की कीमत
आदर्श बनने की कीमत
आसान नहीं है किसी का यूँ ही आदर्श बन जाना।
बहुत ही संताप और यंत्रणाओं से गुजरना होता है।
बहुत सी परीक्षाएं देनी पड़ती हैं ।
त्याग करना पड़ता है अपनी भावनाओं का
अपनी सुख सुविधाओं का ,खुशियों का
सपनों का उम्मीदों का
अपने मुखर स्वभाव का।
एक आवरण चढ़ जाता है चेहरे पर आदर्श का
उसमें से निकलना बहुत दुष्कर कार्य है।
मन एक चंचल बच्चे की तरह गतिविधियां करना
चाहता है किंतु आदर्श उसे वहीं सतर्क कर देता है।
अरे तुम तो एक आदर्श व्यक्तिव हो,
तुम्हें यह काम कतई शोभा नहीं देता।
करेंगी यही अनुकरण तुम्हारी पीढियां
तुम्हें नहीं पता भगवान श्रीराम ने कितनी बड़ी कीमत
चुकाई थी,
एक आदर्श राजा बनने की
वे राम आदर्श राजा तो बन गए थे ।
किन्तु आदर्श पति और पिता नहीं बन पाए।
एक आदर्श भाई बन गए थे
किन्तु अपने पुत्रों के लिए एक प्रश्न बन चुके थे।
एकांत में बेशक लाख आँसू बहाए हो सीता के लिए
किन्तु उन्हें कभी दिन के उजालों में पलकों
तक नहीं आने दिया।
देश ने उन्हें एक आदर्श राजा बनाकर रखा।
उनकी खुशियों को अनदेखा कर दिया।
आदर्श तो आदर्श होता है
वह एक साधारण इंसान का तमगा लेकर
कैसे घूम सकता है।
भले तड़पता रहे ,सिसकता रहे, घुटता रहे
और अपनी तारीफ में पन्नों पर लिखे,
कुछ शब्दों को पढ़ कर बेशक मन
को धोखा देता रहे की आदर्श छवि बनाने
के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा।
इसलिए मेरी सलाह है कि
तुम अपने अभेद्य दुर्ग में वापस जाओ!
वहाँ से निकलने की छूट नहीं तुम्हें।
अपने आदर्शों की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी।
Pallavi
15-Dec-2021 06:40 PM
Nice
Reply
Priyanka Rani
15-Dec-2021 06:18 PM
Nice
Reply
Kaushalya Rani
15-Dec-2021 05:21 PM
Nice
Reply